शनिवार, 7 मई 2011
लव आज नो कल
प्यार, इश्क और मोहब्बत के पैमाने बदल रहे हैं। न केवल रीयल लाइफ में बल्कि रील लाइफ में भी। इसके पीछे का कारण आप इम्तियाज अली की सोच को मान सकते हैं। युवा इम्तियाज ने जब पहली फिल्म नये चेहरों अभय देओल और आएशा टाकिया को लेकर "सोचा ना था' बनाई तो सबने फिल्म की शुरुआत में आलोचना की। उस समय कम लोग ही जानते थे कि यह फिल्म बॉलीवुड में नई कहानियों की बीज बो रही है। नई कहानियां, जिनमें प्यार बदल रहा है, कभी आहें भरता है तो कभी गुस्सा कर रहा है। कभी रोता है तो कभी रूलाता है। कई बार तो मतभेद इतने बढ़ जाते हैं कि एक-दूसरे का साथ छोड़ने में ही भलाई समझते हैं। कभी तो करियर को चुनने की जद्दोजहद में प्रेमी का साथ छोड़ने में हिचकिचाते तक नहीं। यह सब आज के नये दौर का बीज है, जो कुछ हद तक फल-फूल भी चुका है।
जिससे प्यार किया, उसी से शादी भी किसी न किसी तरह तय हो चुकी है। लेकिन मन बार-बार उसकी ओर खींचता है, जिसे कभी उसके पैरेंट्स ने पसंद किया था। इम्तियाज अली की फिल्म "सोचा ना था' की कहानी ऐसी ही थी। युवा मन के इस अंतद्र्वन्द्व को अभय देओल ने बखूबी बड़े पर्दे पर अपनी एक्टिंग से जीवंत कर दिया था। बाद में इसी परिपाटी को अन्य निर्देशकों ने भी भुनाया। इम्तियाज अली खुद इसी कहानी को नित नये रंग देकर बड़े पर्दे पर प्रस्तुत करते रहे। "जब वी मेट' में जहां करीना कपूर अपने प्रेमी के साथ के लिए शाहिद कपूर के साथ भाग जाती है, लेकिन अंतत: मिलती है शाहिद को ही। युवा मन में बसे प्यार के इसी उधेड़बुन को उन्होंने गीत के जरिए खोलकर रख दिया। फिल्म बताती है कि कई दफा आप समझ ही नहीं पाते कि जिसे आप प्यार समझ रहे हैं, क्या वह वाकई प्यार है या कोई और अहसास। क्या यह गीत की जिद थी या सिर्फ यंगस्टर्स का इंफैचुएशन। बाद में फिल्म "लव आज कल' के जरिए इम्तियाज ने करियर की चाहत में ब्रोकअप करते दो युवाओं को दिखाया। ये दो युवा आम प्रेमियों से अलग निकले, जो अपने ब्रेकअप को भी सेलिब्रेट करते हैं। हां, यह बात भले ही अलग है कि बाद में अपने असली प्यार को पहचानते हैं।
पुनीत मल्होत्रा निर्देशित फिल्म "आई हेट लव स्टोरीज' में लड़की को किसी से प्यार है। वह काम के सिलसिले में किसी और से मिलती है और उसे उस दूसरे लड़के से भी प्यार हो जाता है। वह समझ नहीं पाती है कि उसकी सेट लाइफ में यह कैसा भूचाल आ गया है। लड़का हर समय आई हेट लव स्टोरीज कहता रहता है, लड़की हर समय आई लव लव स्टोरीज कहती रहती है। जाहिर है ऐसे "2 पोल्स अपार्ट' में प्यार हो जाएगा तो कैसी लव स्टोरी बन जाएगी। इसी तरह की कहानी "वेकअप सिड' में भी थी। 27 साल की आएशा के घर जब कॉलेज से तुरंत निकला आलसी सिड रहने आता है तो वह मना नहीं कर पाती। धीरे-धीरे उसे उसकी आदत पड़ती जाती है। लेकिन करियर में उछाल पाने के लिए वह अपने बॉस के साथ डेट पर जाने से हिचकती नहीं। वहीं जब किसी और लड़की को सिड के साथ अपने घर पर पाती है तो जलकर राख हो जाती है। उम्र के फासले को कम करती अयान मुखर्जी निर्देशित यह फिल्म रणबीर कपूर और कोंकणा सेनशर्मा जैसे अनयूजयूअल पेयर की वजह से भी चर्चा में रही।
कंफ्यूजन को दर्शाती एक और फिल्म आई "ब्रेक के बाद'। दानिश असलम निर्देशित यह फिल्म बहुत चली तो नहीं लेकिन अनसेट पैटर्न की बनी यह फिल्म युवाओं के मन में बसे कंफ्यूजन को अलग तरह से दिखाती है। आलिया और अभय प्यार करते हैं, फिर करियर के लिए प्यार को छोड़ देते हैं। फिर प्यार करते हैं, फिर अलग होते हैं और अंतत: एक हो ही जाते हैं। करियर को लेकर युवाओं के मन में जो जद्दोजहद चल रही है, उसे लेकर भी नये निर्देशकों में उत्साह है। युवा मन क्या चाहता है और क्या नहीं, यह खुद उसे पता नहीं। तो कुछ फिल्मों में युवाओं के मन में बसे अंतरजाल को भी जगह दी गई है। हाल ही में प्रकाश झा निर्मित और अलंकृता श्रीवास्तव निर्देशित फिल्म "टर्निंग 30' आई। फिल्म में गुल ने लीड रोल निभाया था, जो अपने करियर और प्यार के बीच बंटी है। उसे खुद पता नहीं कि वह क्या चाहती है, बस वह अपनी जिद में धुनी हुई है। युवाओं की सोच और उनके अंदर के मकड़जाल को यह फिल्म बेहतरी से प्रदर्शित करती है। प्यार, सेक्स और करियर को लेकर चल रही उधेड़बुन में फंसी नैना किस तरह से अपनी जिंदगी की लड़ाई लड़ती है, इसे हर युवा को देखना चाहिए और बड़ों को देखकर युवाओं को समझना चाहिए। प्यार और सेक्स, दो अलग चीजें हैं, इसे भी फिल्म में खूबसूरती से दिखाया गया है।
देखा जाए तो युवाओं के कंफ्यूज्ड प्यार को पहली दफा साफ-साफ ढंग से फरहान अख्तर ने अपनी फिल्म "दिल चाहता है' में दिखाया था। फिल्म का कैरेक्टर आकाश अपनी फ्रेंड शालिनी को लकेर कंफ्यूज है। शालिनी की शादी किसी और से तय है, फिर भी वह आकाश को चाहती है। आकाश को समझ नहीं आता कि क्या वह सचमुच उसे चाहता है क्योंकि उसे प्यार जैसे घिसेपिटे फॉर्मूले पर विश्वास नहीं है। दूसरी ओर, सिद्धार्थ है जिसे अपने मां की उम्र की औरत से प्यार है। समीर को हर लड़की से प्यार हो जाता है। फरहान अख्तर ने बेहद खूबसूरती से प्यार के त्रिकोण को दिखाने की कोशिश की। यही वजह है कि उस साल का नेशनल अवार्ड इसी फिल्म को हासिल हुआ। आमिर खान प्रोडक्शन ने इमरान खान को लॉन्च किया था फिल्म "जाने तू या जाने ना' से। फिल्म कुछ दोस्तों पर आधारित थी, जिनकी जिंदगी हंसी-मजाक में बीत रही है। कॉलेज की लाइफ खत्म होते ही उनकी जिंदगी भी बदल जाती है। दोस्ती जो प्यार ही है, समझ में नहीं आती। सो, गर्लफ्रेंड/ब्वॉयफ्रेंड बना लिए जाते हैं। लेकिन जैसे ही इंटिमेसी किसी और से होती है, दोनों का प्यार उमड़ पड़ता है। प्यार के इस उमड़ते-घुमड़ते जज्बे को दिखाने का साहस या सही अर्थों में कहें तो अनुभव नए निर्देशको के पास ही है। जिन्होंने इस नए प्यार को चखा है और महसूस किया है। यह नयापन, नई सोच और नया अनूभव पुराने निर्देशकों में कहां, जो सेट पैटर्न में ही फिल्में बनाते हैं।
नया नाम मधुर भंडारकर का है, जिन्होंने इस दफा कुछ नया ट्राई किया है। अपनी हालिया रिलीज फिल्म "दिल तो बच्चा है जी' में उन्होंने प्यार के इस नये रूप को थोड़ा हटके अंदाज में दिखाया है। प्यार अब करियर के आड़े नहीं आता, यह तो फिल्मों में दिखाया ही जा रहा है। लेकिन मधुर ने अपनी इस नई फिल्म में लड़कों की जगह लड़कियों को दी है। इस फिल्म के लड़के नहीं बल्कि लड़कियां प्यार करती हैं और छोड़ जाती हैं उन लड़कों को अपने सुखद भविष्य के लिए। यहां लड़कियों का प्यार नई जमीन पर खड़ा है, जिनके लिए प्यार सब कुछ नहीं, प्यार से बड़ी भी कई चीजें जिंदगी में करने को हैं।
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