




पापा के साथ की खट्टी-मीठी यादें सबके दिल में होती हैं। किसी को पापा कड़क लगते हैं तो किसी को स्ट्रिक्ट, फिर भी सबको अपने पापा किसी न किसी तरह से आइडियल जरूर लगते हैं। टीवी एक्टर्स बता रहे हैं अपने पापा से जुड़ी यादें-
मोना सिंह : कई यादें हैं, जो स्पेशियली पापा के साथ की हैं। हमलोग दिल्ली में रहते थे और मैं हमेशा से स्पोट्र्स में भाग लेना चाहती थी। एक बार बड़ी मुश्किल से मुझे 100 मीटर की रेस में भाग लेने का मौका मिला। मेरे पापा का उस दिन ऑफिस था तो मैं थोड़ी अपसेट थी। उस दिन मैं ट्रैक पर थी, तभी देखा कि सामने मेरी मम्मी के साथ पापा भी बैठे हुए हैं। पापा को देखकर इतनी खुशी हुई, जितनी रेस में भाग लेकर नहीं हुई थी। मैं तेजी से दौड़ी और सेकेंड आई। रेस में सेकेंड आने से ज्यादा खुशी मुझे पापा को देखकर थी। दूसरी दफा की याद तब की है, जब मुझे "जस्सी जैसी कोई नहीं' में लीड रोल निभाने का मौका मिला था। पुणे में मेरे कॉलेज ने मुझे इनवाइट किया था, तब पापा के चेहरे पर गर्व देखकर मैं खुश हो गई थी।
गुरमीत चौधरी : मेरी यादें बड़ी मजेदार हैं। मैं क्लास बंक करता था और पापा मुझे पकड़ लेते थे। मैं सड़क पर आगे रहता था और वह पीछे। उस समय अपने पापा की पर्सनालिटी को देखकर मैं खुश हो जाता था। जब मैंने मुंबई आने के बारे में उनसे कहा तो उन्होंने आर्मी ड्यूटी से छुट्टी ली और मेरे साथ यहां आए। उस समय मैं 17 साल का था। मेरे पापा अपनी यूनिफॉर्म पहनते और मेरे साथ जाते। मुझे याद है कि लोग मेरे पापा को कितनी इज्जत से देखते थे। उन्होंने ही मुझष श्यामक डावर डांस एकेडमी में एडमिशन कराया। बाद में मेरे पापा ने जबलपुर से मुंबई ट्रांसफर लिया ताकि हम सब साथ रह सकें।
देबिना बनर्जी : पापा के नाम से ही मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है। वह हमेशा मेरे अल्टीमेट हीरो रहेंगे। मैं अपने पापा से ज्यादा खुली हुई नहीं हूं। वह हमेशा अपने काम में बिजी रहते थे। लेकिन जब भी हमें उनकी जरूरत पड़ती, वह साथ होते रहे हैं। मां के साथ क्लोज होने के बावजूद मैं अच्छी खबर पहले हमेशा पापा से ही शेयर करती हूं। जब मेरी इच्छा मिस कोलकाता कांटेस्ट में भाग लेने की हुई तो मां ने पापा से बात करने को कहा। मुझे डर लगा था लेकिन उन्होंने मुझे समझा और फॉर्म खुद भरा। उनके पास कभी कार नहीं थी लेकिन उन्होंने मेरे लिए कार खरीदी। मेरे लिए मोबाइल खरीदा। मुझे याद है उन्होंने किसी से कहा था कि मैं गरीब हूं लेकिन मेरी बेटी अमीर है।
रागिनी खन्ना : मैं शांत बच्ची थी और कभी भी अपने पैरेंट्स को परेशान नहीं करती थी। पूरा दिन मम्मी के साथ बिताती थी लेकिन रात को पापा के साथ ही सोती थी। मुझे तब तक नींद नहीं आती थी, जब तक वह मुझे गले नहीं लगाते थे। ऐसा आठ साल की उम्र तक चलता रहा। बड़ी होने पर मैं मम्मी के साथ कंफर्टेबल हो गई क्योंकि पापा स्ट्रिक्ट थे। पापा से जुड़ा एक जोक हमें हमेशा याद रहता है। जब मैं चार साल की थी और पापा ने किसी वजह से डांट दिया था तो मैं मम्मी के पास गई और उन्हें कहा कि डैडी बदल दो।
अभिषेक रावत : मुझे पापा की हर बात अच्छी लगती है। मां तो हमेशा अपने बेटे का साथ देती है लेकिन जब बेटे बड़े हो जाते हैं तो मां का कंट्रोल उन पर से हट जाता है। तब पापा का कंट्रोल ही काम आता है। मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ है। पापा भले ही बचपन में हमें स्ट्रिक्ट लगते रहे लेकिन अब लगता है कि यदि वे स्ट्रिक्ट न होते तो हम आज इस काबिल न बनते। बच्चों में मोरल वैल्यूज पापा की वजह से ही आती है।