गुरुवार, 21 जून 2012

‘भ” से खास जुड़ाव - नीलू



टीवी पर आने वाले कई मशहूर चरित्रों में से एक है - भाबो। स्टार प्लस के हिट धारावाहिक ‘दीया और बाती हम” की भाबो इससे भी कहीं ज्यादा हिट हैं। अपने बेटे सूरज को लेकर हद से ज्यादा पजेसिव  और बहू संध्या को रात-दिन ताने सुनाती भाबो कब सबकी फेवरेट बन गई, पता ही नहीं चला। असली भाबो को कम ही लोग जानते हैं। उनका असल नाम नीलू अरविंद है  और वह राजस्थानी फिल्म  और थिएटर की जानी-पहचानी अदाकारा हैं। ‘दीया  और बाती” से लेकर नीलू जी की एक्टिंग के शुरुआती दिनों  और व्यक्तिगत जीवन से जुड़े कई मुद्दों पर हुई नीलू ने बताया-

दीया  और बाती हम
इस धारावाहिक के निर्माता शशि  और सुमीत मित्तल राजस्थान से हैं। उन्होंने मेरे जानने वाले से मेरा नंबर लेकर मुझे फोन किया। मैंने उनसे कहा कि मैंने अब तक टीवी किया ही नहीं है, सिर्फ फिल्में की हैं। तब उन्होंने मुझे धारावाहिक का विषय बताया  और यह भी बताया कि इसकी पृष्ठभूमि राजस्थान है। तब मैंने सोचा कि क्यों न ऑडिशन देकर देखूं। मैं मुंबई आई  और ऑडिशन देते के साथ ही मुझे बता दिया गया कि मैं भाबो के रोल के लिए चुन ली गई हूं। 

भाबो से मिली पहचान
मैंने धारावाहिक का पायलट शूट किया  और इसके ऑन एयर का इंतजार में लग गई। किसी कारणवश यह धारावाहिक छह महीने के बाद ऑन एयर हुआ। तीन महीने बाद ही लोग मुझे पहचानने लगे। पहले लोग मुझे सिर्फ राजस्थान में पहचानते थे, अब देश के साथ विदेशों में भी मुझे लोगों से प्यार मिलता है। 

‘भ” अक्षर है खास
मैंने एक राजस्थानी फिल्म ‘भोमली” की थी। उसमें मेरा टाइटल रोल था भोमली का। उस फिल्म ने मुझे राजस्थान में सबका फेवरेट बना दिया। अब इस धारावाहिक के भाबो कैरेक्टर ने मुझे सबका चहेता बना दिया है। मैंने दोनों नामों में समानता पर गौर नहीं किया था। किसी ने जब मेरा इस ओर ध्यान दिलाया तो मुझे लगा कि अरे ‘भ” अक्षर तो मुझसे विशेष तौर पर जुड़ गया है।

सेट पर सबका साथ
सेट पर मेरी सबके साथ बनती है। लेकिन उन सबमें खास है संध्या। संध्या के साथ मेरी दोस्ती सबसे अलग है। सूरज  और मीना तो मेरे बिना खाना तक नहीं खाते। हम सब मिलकर सेट पर काम के साथ खूब मस्ती भी करते हैं। 

अन्य धारावाहिक-फिल्म
इसी धारावाहिक की शूटिंग में 25 दिन निकल जाते हैं। टीवी से तो ऑफर मिलते रहते हैं लेकिन मेरे पास समय ही नहीं है। इस धारावाहिक को मेरी सबसे ज्यादा जरूरत है। रही बात हिंदी फिल्मों की तो उसके बारे में मैंने कभी सोचा ही नहीं।

राजस्थानी थिएटर
मेरा प्यार है राजस्थानी थिएटर। उसके लिए मैं बिल्कुल भी समय नहीं निकाल पाती हूं। फिर भी मेरी कोशिश हमेशा यह रहती है कि मैं राजस्थानी थिएटर करूं। अभी हाल ही में मैंने एक शो किया भी है। 

राजस्थानी फिल्म
‘राजू बन गया एमएलए” नामक राजस्थानी फिल्म मई में रिलीज हुई है। इसमें मैंने लीड रोल किया है। इसमें मेरे साथ हीरो के तौर पर मेरे पति अरविंद वाघेला हैं, उन्होंने ही फिल्म का निर्माण भी किया है। 

11 साल से एक्टिंग
मैं बचपन से ही स्टेज शो करती रहती थी। हिंदी फिल्म ‘गोलमाल” में मैंने एक छोटा सा रोल भी किया था। अमिताभ बच्चन से ऑटोग्राफ लेने एक छोटी बच्ची आती है, वह छोटी बच्ची मैं ही थी। स्टेज पर ही देखकर मुझे राजस्थानी फिल्म ‘सुपातर बींदड़ी” ऑफर की गई थी। मैं तब 11 साल की थी। परिवार के लोग नहीं चाहते थे कि मैं फिल्म करूं लेकिन मेरे मां-पिता ने मुझे खेल-खेल में वह फिल्म करने दिया। वह फिल्म धारावाहिक ‘बालिका वधू” की तरह थी  और सुपरहिट हो गई। उसके बाद से मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। मैं अब तक 50 से अधिक राजस्थानी फिल्में कर चुकी हूं। राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से मुझे बेस्ट एक्ट्रेस का सम्मान मिल चुका है। मैंने गोविंदा के साथ ‘डीरा बेगो आई जेरो” नामक राजस्थानी फिल्म की है। सुजीत कुमार, राकेश रोशन  और राजकिरण के साथ ट्रिपल रोल वाली ‘रंकुड़ी-जंकुड़ी” नामक फिल्म भी की है। 

परिवार का सहयोग
परिवार के बाकी लोग तो नहीं चाहते थे कि मैं अभिनय करूं लेकिन मेरे माता-पिता और भाई ने उन्हें समझाया। कई दिक्कतों का भी सामना करना पड़ा था। शादी के बाद मेरे पति ने हरसंभव मेरी मदद की। मेरे पति तो मेरे करियर में भी मेरी मदद करते रहते हैं। बच्चों के होने के बाद भी मैंने अभिनय करना नहीं छोड़ा। ‘दीया  और बाती हम” करने की वजह काफी हद तक मेरा 10 साल का बेटा केजर  और 5 साल की बेटी वंशिका हैं। वे दोनों चाहते थे कि मैं कोई हिंदी धारावाहिक करूं। 

एक्टिंग ही प्यार
अभिनय से मुझे इस कदर प्यार है कि मैं चाहती हूं कि एक्टिंग करते ही मुझे मृत्यु अपनी गोद में समा ले। यदि मेरे जीवन में अभिनय नहीं है तो मेरे जीवन का कोई अस्तित्व नहीं। 

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