यूएफओ 0110 इंटरनेषनल फिल्म फेस्टिवल में आज सुनने से लाचार लोगों (बधिरों) के जीवन परिवेष की गहराइयों में झांकने का प्रयास किया गया और इस माध्यम से यह संदेष दिया गया कि बधिर होना महज विकलांगता नहीं है बल्कि दुनिया को अलग नजरिये से अनुभव करना है।
फेस्टिवल में आज बधिरों की जीवनचर्या के विभिन्न आयामों को फिल्मों की एक श्रृंखला के माध्यम से दिखाया गया। ये फिल्में ब्रिटिष साइन लैंग्वेज़ ब्राडकास्टिंग ट्रस्ट (बीएसएलबीटी) द्वारा प्रस्तुत की गईं। आज प्रदर्षित फिल्मों में षामिल हैं - एडमिट नॉन, फाइव नीडल्स, चेजिंग कॉटन क्लाउड्स, और द एण्ड। बीएसएलबीटी की प्रस्तुतियों के अलावा इसी सिलसिले में उना विदा पलब्रास (ए लाइफ विदाउट वर्ड्स) नामक एक रोचक मूवी भी देखने को मिली।
प्लैगियेरिज़्म के मसले पर यूएफओ 0110 इंटरनेषनल डिजिटल फिल्म फेस्टिवल में आज भारत में कॉपीराइट कानून पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया।
नामी गीतकार और पटकथा लेखक जावेद अख़्तर के साथ पारोमिता वोहरा (डाक्युमेंट्री फिल्म निर्माता), अमित दत्ता (अधिवक्ता) और राहुल राम (बास गिटारवादक और गायक, इंडियन ओषन) ने सेमिनार में खुल कर अपनी बात रखी।
गीतकार और कम्पोज़र का पक्ष लेकर इस कानून में बदलाव की वकालत करते जावेद अख़्तर ने कहा, ‘‘गीतकार और कम्पोजर की क्रिएटिवीटी को फिल्म निर्माता नजरअंदाज नहीं कर सकते। दरअसल हम सभी को इस मसले पर ध्यान देना होगा और इस दिशा में काम करना होगा। मेरे लिखे गाने रेडियो और टीवी पर बजते हैं, इंटरनेट से डाउनलोड किए जाते हैं और विदेषों में भी बजाए जाते हैं। इसलिए इनकी रॉयल्टी में लेखकों की हिस्सेदारी होनी चाहिए। भारत में हम ने कभी भी कॉपीराइट को गंभीरता से नहीं लिया है और आज हम इस लापरवाही का खामियाजा भुगत रहे हैं।’’
‘‘बधिरों में जीवन के प्रति उत्साह और सकारात्मक सोच को प्रदर्षित करने के इस अवसर पर आज हम ने सुनने से लाचार लोगों के एक समूह को विषेश तौर पर आमंत्रित किया। सांकेतिक भाशा और सबटाइटल्स (परदे के सबसे नीचे) की मदद से ये फिल्में खास तौर पर बधिरों के लिए बनी हैं और बधिरों के बारे में हैं। इन प्रयासों के षानदार नतीजे मिले हैं,’’ मधुरीता आनंद कहती हैं जो यूएफओ 0110 आईडीएफएफ की फेस्टिवल डायरेक्टर और खुद एक फिल्म निर्देषिका हैं और एक्का फिल्म्स प्राइवेट लि. की संस्थापिका हैं।
कॉपीराइट के मसले पर मधुरीता आनंद/पारोमिता वोहरा (उसने) कहा, ‘‘तकनीकी के दम पर पायरेसी में वृद्धि की बात जगजाहिर है इसलिए हमें चाहिए कि मसले को गंभीरता से लें। वक्त आ गया है कि नवोदित फिल्मकार इस उद्योग जगत की बारीक से बारीक बातों को समझें। पर अफसोस, कॉपीराइट और प्लैगियेरिज़्म के मामलों को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। इस सेमिनार के पीछे हमारा असली मकसद इस संबंध में जागरूकता लाना है।’’
उना विदा सिन पलाब्रास एक डाक्युमेंट्री है जिसके निर्देषक ऐडम आइज़नबर्ग हैं। फिल्म में दो बधिर हैं - डल्का मारिया और उसका भाई फ्रांसिस्को जो कोई भाशा नहीं जानते हैं - बोलना, लिखना या फिर सांकेतिक भाशा समझना भी उनके वष में नहीं है। ऐडम आइज़नबर्ग के अनुसार, जन्मजात बधिर को यदि सांकेतिक भाशा नहीं सिखाई जाती है तो अपने निजी मामलों में भी वे मूक हो जाते हैं। किसी भाशा के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। यह तो सरासर अन्याय लगता है। इसी सोच के साथ, उना विदा सिन पलाब्रास पहली भाषा सीखने की अहमियत पर केंद्रित मसलों को बखूबी प्रदर्षित करती है।
एडमिट नॉन एक अति यथार्थवादी कॉमेडी है जो बधिरों की रोजमर्रा की जिन्दगी में आने वाली मुसीबतों को दिखाती है। इसका फिल्मांकन ब्रिटिष साइन लैंग्वेज़ में किया गया है जो सम्मोहक है। कहानी दो बधिर सहकर्मियों की है जिनकी सिनेमा हॉल यात्रा की अंतिम परिणति अतियर्थार्थवादी खोज में दिखती है क्योंकि फिल्म से सबटाइटल भी हटा लिए गए हैं। फिल्म की निर्देषिका हैं टेरेसा गैरेटी।
फाइव नीडल्स एक ऐतिहासिक नाटक है जो हमें हिटलर के कंसंट्रेषन कैम्प में ले जाता है। जुलियन पीड्ल कैलो निर्देषित फिल्म पोलैंड के बिरकेनाउ की चार बधिर युवतियों की जिन्दगी पर केंद्रित है। ये महिलाएं सिलाई के काम में जबरन झांकी गई हैं और लंबी, बारीक सुई से ऊन की मोटी परतों और ‘फर’ को सिलने में लगी रहती हैं। एक अन्य फिल्म चेज़िंग कॉटन क्लाउड्स एक लघु फिल्म है। इसमें एक 11 वर्शीय बधिर बालक, माइकेल अपनी कल्पना की दुनिया में रहता है। अपने पिता के खोने का गम, और स्कूल एवं घर पर अलग-थलग होने का दुःख भुलाने के लिए वह जादुई काल्पनिक दुनिया बना लेता है जहां उसे अपने पिता के जीवित होने का अहसास रहता है।
1980 के दषक से षुरू इस ड्रामा, ‘द एण्ड’, में चार बधिर बच्चों पर 60 साल से अधिक समय तक नजर बनी रहती है। फिल्म में दिखाया गया है कि एक बधिर के इलाज का बधिर समुदाय पर क्या प्रभाव पड़ता है। यह विचारोत्तेजक फिल्म भविश्य के लिए एक वैकल्पिक नजरिया पेष करती है।
आज प्रदर्षित अन्य फिल्में हैं - सेल्फलेस डिवोषन, कोडा, सड, जस्ट षॉर्ट ऑफ ए डे, न्वॉयट गा लिडा, लाडम, महफूज, यातास्तो, साइलैंट स्नो और मॉरिस।
रॉयल्टी में लेखकों, गीतकारों की हिस्सेदारी होनी चाहिए, इसमें कोई शक नहीं।
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