मंगलवार, 3 जुलाई 2012

जंक मेल से मिला फिल्म का आइडिया- गौरव पंजवानी





गौरव पंजवानी को फिल्म निर्देशक बनने के लिए बहुत संघर्ष नहीं करना पड़ा क्योंकि उनका बचपन न केवल थिएटर और फिल्मों में काम करके बीता है बल्कि इसलिए भी क्योंकि उनको सही समय पर सही ब्रेक भी मिल गया। जल्दी ही रिलीज को तैयार फिल्म ‘सेकेंड मैरिज डॉट कॉम” के निर्देशक गौरव पंजवानी ने बहुत कम उम्र में वह सब हासिल करके दिखाया है, जिसके लिए लोगों को सालों साल लग जाते हैं। जयपुर के रहने वाले गौरव ने अपनी पहली फिल्म के लिए आज के समय का कंटेम्पररी सब्जेक्ट चुना। गौरव पंजवानी से बातचीत-

अपने बैकग्राउंड के बारे में बताइए, किस तरह से आपका रुझान फिल्मों की ओर हुआ?
मैं जयपुर का रहने वाला हूं। वहां मेट्रो कल्चर पूरी तरह से नहीं है, फिर भी मैंने आठवीं क्लास से ही थिएटर में एक्टिंग करना शुरू कर दिया था। ग्यारहवीं क्लास तक आते-आते नाटकों का निर्देशन करने लगा था। उसी समय मेरे स्कूल की प्रिंसिपल ने मुझे बुलाया  और  एक शॉर्ट फिल्म का सब्जेक्ट सुनाया। मुझे लगा कि वह इसमें मुझे एक्ट करने के लिए कहेंगी। लेकिन उन्होंने मुझे उस फिल्म को डायरेक्ट करने के लिए कहा। फिल्म का नाम ‘बिंदिया चमकेगी” था, जो बिंदिया नामक लड़की की कहानी थी। वह किस तरह पढ़ना चाहती है  और उसका एडमिशन आईआईटी में होता है। उस फिल्म ने मेरे जीवन की दिशा बदल दी  और मुझे लगा कि मैं बस यही करना चाहता हूं।

फिर मुंबई कब आना हुआ? 
बारहवीं के बाद मैंने देश-विदेश की हर तरह की फिल्में देखना शुरू कर दिया था। बाद में शॉर्ट फिल्में बनाने लगा। अपनी शॉर्ट फिल्मों के लिए मुझे 17-18 अवॉर्ड मिल चुके हैं। मैं फ्रीलांस में विज्ञापन बनाता था, उससे जो पैसे मिलते थे, उनसे फिल्में बनाता था। शुरुआत में तो परिवार से कोई मदद नहीं मिली। मेरे मुंबई आने को लेकर पर भी वे खुश नहीं थे। एक एड एजेंसी के काम के सिलसिले में पिछले साल मुंबई आया  और यहीं रह गया। 

एक साल में ही आपको फिल्म डायरेक्ट करने का मौका मिल गया, यह सब कैसा संभव हुआ?
मैं खुद को लकी मानता हूं कि मुझे एक साल में ही यह सुनहरा मौका मिला। ‘सेकेंड मैरिज डॉट कॉम” के जो एग्जक्यूटिव प्रोड्यूसर हैं, उन्होंने मुझे बुलाया  और बताया कि प्रोड्यूसर विनोद मेहता फिल्म बनाने के लिए किसी कहानी की खोज में हैं। मैं विनोद जी से मिला  और उन्हें यह कहानी सुनाई। उन्हें कहानी पसंद आई  और  दिसंबर में फिल्म की शूटिंग शुरू हो गई। 

फिल्म की कहानी क्या है  और इस कहानी के बीज आपको कहां मिले?
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, फिल्म दूसरी शादी पर आधारित है। एक लड़का है, जिसकी मां की मृत्यु हो चुकी है  और उसे लगता है कि उसकी शादी से पहले उसके पापा का सेटल होना जरूरी है। इसी तरह एक लड़की है, जो अपनी मां की शादी कराना चाहती है। दोनों मिलते हैं  और अपने-अपने मम्मी  और पापा की शादी कराने में लग जाते हैं। लेकिन तब क्या होता है, जब उन  दोनों को अहसास होता है कि वे ही एक-दूसरे से प्यार करने लगे हैं। इस फिल्म की कहानी के बीज मुझे 2010 में मिले थे। मेरे ई-मेल पर सेकेंड मैरिज को लेकर एक जंक मेल आया था। उसमें लिखा था कि 15 साल के बेटे  और 13 की बेटी ने अपने-अपने मम्मी और पापा की दूसरी शादी करवाई। तब मेरे दिमाग में यह कौंधा कि यदि इन दोनों को आपस में प्यार हो जाए तो किस तरह से कहानी आगे बढ़ेगी। 

इन दिनों शहर को भी बतौर चरित्र लिया जाने लगा है, आपने दिल्ली  और जयपुर को ही क्यों चुना?
बिल्कुल सही, मैंने दिल्ली-गुड़गांव  और जयपुर के चरित्र के तौर पर दिखाने की कोशिश की है। इसकी कहानी भी दिल्ली को सूट करती है क्योंकि फिल्म के कैरेक्टर्स पंजाबी हैं। लड़का गुड़गांव  और लड़की जयपुर की रहने वाली है। गुह़गांव की अपनी खूबसूरती है, इसके एरियल शॉट्स इतने सुंदर आए हैं कि मैं बयान नहीं कर सकता। इसके अलावा मैंने वसंत कुंज में भी शूटिंग की, दिल्ली के फ्लेवर के लिए। जयपुर से दिल्ली के रास्ते की ऑन रोड शूटिंग भी फिल्म के लिए की गई। 

फिल्म के लिए नए चेहरों को चुनने की क्या वजह रही?
पहली दफा मेरे दिमाग में यही आया कि यदि हम थोड़ी अलग फिल्म बना रहे हैं तो नए चेहरों को लेना ही ठीक रहेगा। इस तरह से सिनेमा हॉल में बैठा दर्शक कैरेक्टर्स के रिएक्शन को समझ नहीं पाएगा। मेरे एक दोस्त ने मेरे फेसबुक वॉल पर एक क्लिप पोस्ट किया था, जिसमें सयानी थी। मुझे उसका काम पसंद आया और मैं उससे मिला। हीरो के लिए मुझे गुडलुकिंग लड़के की जरूरत थी तो मुझे विशाल पसंद आ गया। मैंने उसका ऑडिशन भी नहीं लिया। सयानी की सिंगल मदर के लिए चारू जी  और विशाल के पापा के रोल में मोहित चौहान मुझे पसंद आ गए। एक बात आपको यह बता दूं कि इनी लाइफ ऑन स्क्रीन  और  ऑफस्क्रीन काफी हद तक मिलती है, जिसकी वजह से भी मैंने इन्हें साइन किया। सयानी सिंगल मदर की बेटी है। चारू ने कम उम्र में ही अपने पति को खो दिया।  और जहां तक मुझे पता है कि मोहित चौहान ने भी देरी से शादी की। मुझे लगा कि ये सब इमोशंस को असल मायने में जाहिर कर पाने में सफल होंगे। 

इन दिनों ट्रेंड है कि कंटेम्पररी फिल्मों को अवॉर्ड समारोहों में भेजने का, आपका क्या इरादा है?
फिल्म के निर्माता ऐसा नहीं चाहते। हर निर्माता की तरह उनकी चाहत है कि फिल्म अच्छी चले  और कमाए। हां, यदि यह फिल्म किसी अवॉर्ड फंक्शन में जाए तो मुझे जरूर खुशी होगी। 

इस फिल्म की कामयाबी की कितनी उम्मीद है?
भला कौन नहीं चाहेगा कि उसकी फिल्म को लोग पसंद करें। लेकिन मैं यह भी चाहता हूं कि मेरी इस फिल्म से यदि किसी को प्रेरणा मिलती है कि वह जीवन में नई शुरुआत कर सके तो वही मेरी कामयाबी होगी। 

इसके बाद क्या योजना है?

मुझे नहीं पता! यदि लोगों को फिल्म पसंद आई तो  और फिल्में बनाऊंगा। यदि खुदा-न-खास्ते नहीं पसंद आई तो कहीं भी एडिटर या कोई और नौकरी कर लूंगा। 

शुक्रवार, 22 जून 2012

करण के नजदीक हूं : क्रिस्टल डिसूजा




बोलने में तनिक भी सकुचाहट नहीं। आंखों में चमक! होंठों पर दौड़ती मुस्कुरराहट। लंबी नाक और खूबसूरत फिगर। क्रिस्टल डिसूजा की यही पहचान है। स्टार प्लस के धारावाहिक एक हजारों में मेरी बहना है में लीड भूमिका में दिख रही क्रिस्टल अपने नाम के अनुसार ही खूबसूरत हैं। बालाजी के धारावाहिक कहे ना कहे से अपने करियर की शुरुआत करने वाली क्रिस्टल ने अपनी जिंदगी के कई राज इस मुलाकात में खोले-

कहे ना कहे से लेकर एक हजारों में मेरी बहना है तक का सफर कैसा रहा?
यदि एक लाइन में कहने तो मिले तो कहूंगी- बहुत खूबसूरत  और आसान। कोई स्ट्रगल नहीं करना पड़ा। एकता कपूर ने मुझे देखा  और पसंद कर लिया। कहे ना कहे में एक्टिंग करने का मौका दिया। टीवी इंडस्ट्री से जुड़कर मुझे अच्छा लगने लगा। अब इस धारावाहिक एक हजारों में मेरी बहना है में काम करते हुए बतौर एक्ट्रेस मुझे काफी कुछ सीखने को मिल रहा है। 

क्या सीख रही हैं आप?
प्राइम टाइम पर लीड रोल निभाने का मौका कम लोगों को ही मिलता है, वह भी स्टार प्लस जैसे चैनल पर। जाहिर सी बात है खुश तो बहुत हूं। जबरदस्त एक्सपोजर मिल रहा है। लोगों से बहुत प्यार मिल रहा है। अभिनय से संबंधित छोटी-छोटी बातों के अलावा जिंदगी को समझने का मौका भी। मेरे पिछले शो बात हमारी पक्की है के बाद मैंने ब्रेक लिया था। उसके बाद अचानक इसमें काम करने का मौका मिल गया। 

इन दिनों कई कलाकर एक्टिंग के अलावा रियलिटी शो में भाग ले रहे हैं। आपका कोई इरादा है?
रियलिटी शो करने की इच्छा है। लेकिन डांसिंग से जुड़ा रियलिटी शो। लोगों को नहीं पता है कि डांस मेरा पैशन है। डांस से जुड़ा किसी भी तरह का रियलिटी शो मुझे ऑफर हुआ तो झट से हां कर दूंगी।

और शो होस्ट?
शो होस्ट करने के बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कह सकती। हां, यह जरूर है कि नई चीजें भला कौन नहीं ट्राई करना चाहेगा! 

निजी जिंदगी में क्या चल रहा है?
मेरे पास अपने लिए बहुत कम समय बचता है। आप यदि लव लाइफ के बारे में पूछना चाहती हैं तो पहले ही बता देती हूं कि इसके लिए मेरे पास समय बिल्कुल भी नहीं है। मैं यह मानती हूं कि जब जो चीज होनी है, अपने आप हो जाएगी। हम कुछ नहीं कर सकते। वैसे भी मैं अभी सिफॅ 21 साल की हूं। अभी तो पूरी उम्र पड़ी है।

आपके ऑनस्क्रीन पति करण टैकर के साथ आपकी केमिस्ट्री खूब जम रही है। क्या इसके लिए कुछ खास कोशिश करनी पड़ी?
मैं  और करण बहुत अच्छे दोस्त हैं। साथ में कंफर्टेबल महसूस करते हैं। ऑफस्क्रीन बहुत नजदीक हैं, न दोस्त से थोड़ा भी ज्यादा हैं  और ना ही थोड़ा भी कम। शायद यही वजह है कि लोग हमारी नजदीकियों को गलत समझ रहे हैं। मैं साफ करना चाहूंगी कि करण  और मेरे साथ को लेकर सारी बातें सिर्फ अफवाह ही हैं। 

खाली समय में क्या करती हैं?
अपने परिवार  और दोस्तों के साथ समय बिताती हूं। हम सब पार्टी करते हैं, डिनर के लिए बाहर जाते हैं। वो सारी चीजें करती हूं, जो मेरी उम्र की कोई भी लड़की करती है। अभी मेरे पैरेंट्स ने नया घर खरीदा है तो हमारे बीच बातचीत का नया विषय उस घर का इंटीरियर है। 

कोई ऐसा रोल, जिसे करने की ख्वाहिश है?
मेरे लिए तो जीविका की भूमिका ही आइडियल है। हम दोनों एक-दूसरे को कॉम्प्लिमेंट करते हैं। यदि फिल्मों की बात करूं तो फैशन फिल्म में प्रियंका चोपड़ा वाला रोल करना चाहूंगी। 

आज से पांच साल बाद खुद को कहां  और किस रूप में देखती हैं?
चार साल से काम कर रही हूं। भविष्य के बारे में मैंने कभी भी नहीं सोचा है। वर्तमान में जीना पसंद करती हूं। 

गुरुवार, 21 जून 2012

‘भ” से खास जुड़ाव - नीलू



टीवी पर आने वाले कई मशहूर चरित्रों में से एक है - भाबो। स्टार प्लस के हिट धारावाहिक ‘दीया और बाती हम” की भाबो इससे भी कहीं ज्यादा हिट हैं। अपने बेटे सूरज को लेकर हद से ज्यादा पजेसिव  और बहू संध्या को रात-दिन ताने सुनाती भाबो कब सबकी फेवरेट बन गई, पता ही नहीं चला। असली भाबो को कम ही लोग जानते हैं। उनका असल नाम नीलू अरविंद है  और वह राजस्थानी फिल्म  और थिएटर की जानी-पहचानी अदाकारा हैं। ‘दीया  और बाती” से लेकर नीलू जी की एक्टिंग के शुरुआती दिनों  और व्यक्तिगत जीवन से जुड़े कई मुद्दों पर हुई नीलू ने बताया-

दीया  और बाती हम
इस धारावाहिक के निर्माता शशि  और सुमीत मित्तल राजस्थान से हैं। उन्होंने मेरे जानने वाले से मेरा नंबर लेकर मुझे फोन किया। मैंने उनसे कहा कि मैंने अब तक टीवी किया ही नहीं है, सिर्फ फिल्में की हैं। तब उन्होंने मुझे धारावाहिक का विषय बताया  और यह भी बताया कि इसकी पृष्ठभूमि राजस्थान है। तब मैंने सोचा कि क्यों न ऑडिशन देकर देखूं। मैं मुंबई आई  और ऑडिशन देते के साथ ही मुझे बता दिया गया कि मैं भाबो के रोल के लिए चुन ली गई हूं। 

भाबो से मिली पहचान
मैंने धारावाहिक का पायलट शूट किया  और इसके ऑन एयर का इंतजार में लग गई। किसी कारणवश यह धारावाहिक छह महीने के बाद ऑन एयर हुआ। तीन महीने बाद ही लोग मुझे पहचानने लगे। पहले लोग मुझे सिर्फ राजस्थान में पहचानते थे, अब देश के साथ विदेशों में भी मुझे लोगों से प्यार मिलता है। 

‘भ” अक्षर है खास
मैंने एक राजस्थानी फिल्म ‘भोमली” की थी। उसमें मेरा टाइटल रोल था भोमली का। उस फिल्म ने मुझे राजस्थान में सबका फेवरेट बना दिया। अब इस धारावाहिक के भाबो कैरेक्टर ने मुझे सबका चहेता बना दिया है। मैंने दोनों नामों में समानता पर गौर नहीं किया था। किसी ने जब मेरा इस ओर ध्यान दिलाया तो मुझे लगा कि अरे ‘भ” अक्षर तो मुझसे विशेष तौर पर जुड़ गया है।

सेट पर सबका साथ
सेट पर मेरी सबके साथ बनती है। लेकिन उन सबमें खास है संध्या। संध्या के साथ मेरी दोस्ती सबसे अलग है। सूरज  और मीना तो मेरे बिना खाना तक नहीं खाते। हम सब मिलकर सेट पर काम के साथ खूब मस्ती भी करते हैं। 

अन्य धारावाहिक-फिल्म
इसी धारावाहिक की शूटिंग में 25 दिन निकल जाते हैं। टीवी से तो ऑफर मिलते रहते हैं लेकिन मेरे पास समय ही नहीं है। इस धारावाहिक को मेरी सबसे ज्यादा जरूरत है। रही बात हिंदी फिल्मों की तो उसके बारे में मैंने कभी सोचा ही नहीं।

राजस्थानी थिएटर
मेरा प्यार है राजस्थानी थिएटर। उसके लिए मैं बिल्कुल भी समय नहीं निकाल पाती हूं। फिर भी मेरी कोशिश हमेशा यह रहती है कि मैं राजस्थानी थिएटर करूं। अभी हाल ही में मैंने एक शो किया भी है। 

राजस्थानी फिल्म
‘राजू बन गया एमएलए” नामक राजस्थानी फिल्म मई में रिलीज हुई है। इसमें मैंने लीड रोल किया है। इसमें मेरे साथ हीरो के तौर पर मेरे पति अरविंद वाघेला हैं, उन्होंने ही फिल्म का निर्माण भी किया है। 

11 साल से एक्टिंग
मैं बचपन से ही स्टेज शो करती रहती थी। हिंदी फिल्म ‘गोलमाल” में मैंने एक छोटा सा रोल भी किया था। अमिताभ बच्चन से ऑटोग्राफ लेने एक छोटी बच्ची आती है, वह छोटी बच्ची मैं ही थी। स्टेज पर ही देखकर मुझे राजस्थानी फिल्म ‘सुपातर बींदड़ी” ऑफर की गई थी। मैं तब 11 साल की थी। परिवार के लोग नहीं चाहते थे कि मैं फिल्म करूं लेकिन मेरे मां-पिता ने मुझे खेल-खेल में वह फिल्म करने दिया। वह फिल्म धारावाहिक ‘बालिका वधू” की तरह थी  और सुपरहिट हो गई। उसके बाद से मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। मैं अब तक 50 से अधिक राजस्थानी फिल्में कर चुकी हूं। राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से मुझे बेस्ट एक्ट्रेस का सम्मान मिल चुका है। मैंने गोविंदा के साथ ‘डीरा बेगो आई जेरो” नामक राजस्थानी फिल्म की है। सुजीत कुमार, राकेश रोशन  और राजकिरण के साथ ट्रिपल रोल वाली ‘रंकुड़ी-जंकुड़ी” नामक फिल्म भी की है। 

परिवार का सहयोग
परिवार के बाकी लोग तो नहीं चाहते थे कि मैं अभिनय करूं लेकिन मेरे माता-पिता और भाई ने उन्हें समझाया। कई दिक्कतों का भी सामना करना पड़ा था। शादी के बाद मेरे पति ने हरसंभव मेरी मदद की। मेरे पति तो मेरे करियर में भी मेरी मदद करते रहते हैं। बच्चों के होने के बाद भी मैंने अभिनय करना नहीं छोड़ा। ‘दीया  और बाती हम” करने की वजह काफी हद तक मेरा 10 साल का बेटा केजर  और 5 साल की बेटी वंशिका हैं। वे दोनों चाहते थे कि मैं कोई हिंदी धारावाहिक करूं। 

एक्टिंग ही प्यार
अभिनय से मुझे इस कदर प्यार है कि मैं चाहती हूं कि एक्टिंग करते ही मुझे मृत्यु अपनी गोद में समा ले। यदि मेरे जीवन में अभिनय नहीं है तो मेरे जीवन का कोई अस्तित्व नहीं। 

मैं यहां रिश्ते बनाने नहीं आई हूं - कनिका माहेश्वरी



कनिका माहेश्वरी, इस नाम को कुछ साल पहले लोग न के बराबर जानते थे लेकिन आज यह नाम सबकी जुबान पर है। कनिका से भी ज्यादा लोग मीनाक्षी बींदड़ी को पहचानते हैं। स्टार प्लस पर आने वाले धारावाहिक ‘दीया और बाती हम” में छोटी बींदड़ी मीनाक्षी का रोल कर रही कनिका मूलत: दिल्ली से हैं। कनिका ने अपने ऑन स्क्रीन  और ऑफ स्क्रीन ससुराल के बारे में कई बातें कीं-

‘दीया  और  बाती हम” के मीनाक्षी की भूमिका के लिए हामी भरने की क्या वजह रही?
सच कहूं तो इस भूमिका के बारे में मुझे ज्यादा बताया नहीं गया था। मैं बस यह जानती थी कि शशि  और  सुमीत मित्तल बहुत अच्छे लेखक हैं। मुझे लगा कि जब ये लोग धारावाहिक बना रहे हैं तो कुछ खास तो जरूर होगा। बस इतना पता था कि घर में कोई भी दिक्कत आती है तो उसकी जिम्मेदार मीनाक्षी ही होती है। मैं शूटिंग करती गई आैर लोगों को यह कैरेक्टर पसंद आता गया। 

क्या कभी किसी ने आपसे बीच रास्ते में मीनाक्षी समझकर बात की है?
दिल्ली  और मुंबई में एक अंतर है। दिल्ली में लोग एक्टर्स को देखते ही रुक जाते हैं, जबकि मुंबई में ऐसा कुछ होता नहीं। फिर भी यहां मुंबई में कई लोगों ने मुझे रास्ते में रोक कर ‘वेल डन” कहा है। दिल्ली में तो भीड़ सी हो जाती है। 

‘दीया  और  बाती हम” के सेट पर सबसे ज्यादा किससे बनती है?
सूरज यानी अनस रशिद से मेरी बहुत बनती है। हम पुराने दोस्त हैं। हमारे बीच बात करने के लिए विषय नहीं ढूंढना पड़ता। हम दोनों एक-दूसरे के अच्छे सीन्स की तारीफ भी करते हैं। मैं उन लोगों में से नहीं हूं, जो चिकनी-चुपड़ी बातें करते हैं।  

मीनाक्षी  और कनिका में क्या समानताएं हैं?
मीनाक्षी से कनिका बिल्कुल अलग है। इन दो में कोई समानता नहीं है। मीनाक्षी झूठी  और चीप है, जबकि मैं बबली और एक्स्ट्रोवर्ट हूं। मैं ऑटो वाले से भी बात कर लेती हूं। आप मुझे फैमिली गर्ल कह सकते हैं। 

इतने सालों से टीवी इंडस्ट्री में रहते हुए भी आपका नाम कभी भी किसी के साथ नहीं जुड़ा, कैसे मैनेज किया आपने यह सब?
देखिए, एक सीधी बात मैंने अपने दिमाग में शुरुआत से ही बिठा ली थी। उस पर आज भी कायम हूं, वह ये कि मुझे अपने काम को हमेशा गंभीरता से लेना है। मैं यहां रिश्ते बनाने नहीं आई हूं। न भाई बनाती हूं  और  न बहन। मेरे अपने भाई-बहन बहुत हैं। मैं उन लोगों में से नहीं हूं, जो किसी के साथ घूमते पकड़े जाने पर फट से कह देते हैं कि वह मेरा भाई है। मैंने हमेशा अपने काम  और निजी जीवन के बीच रेखा खींची है। 

एक्टिंग में इंट्री के समय माता-पिता की कैसी प्रतिक्रिया थी?
पापा तो नहीं चाहते थे कि मैं मुंबई आऊं, वह मेरे इस फैसले से खुश नहीं थे। मैं अकेली बेटी हूं उनकी। लेकिन मां ने पूरा सपोर्ट किया। बस उन्हें यही चिंता थी कि मैं मुंबई में अकेले कैसे रहूंगी। 

जब आपको पहली बार स्क्रीन पर देखा तो क्या प्रतिक्रिया रही, खासकर आपके पापा की?
जाहिर सी बात है कि दोनों बहुत खुश हुए। हां, उन्होंने यह जरूर कहा कि मुझमें  और सुधार की जरूरत है। लेकिन अब साढ़े आठ साल की एक्टिंग के बाद दोनों बहुत खुश हैं।

आपकी नई शादी हुई है। काम के चक्कर में हनीमून पर भी नहीं गईं। पति  और ससुराल वालों ने कुछ कहा नहीं?
मेरे पति अंकुर घई मेरा बहुत साथ देते हैं, बिल्कुल उसी तरह जैसे सूरज संध्या का साथ देता है। शादी के बाद मुंबई में मेरे काम करने को लेकर मेरे पति ने ही सबको मनाया। हर महीने के 10-12 दिन मैं दिल्ली में रहती हूं। 

ससुराल में किस तरह आपने सबको प्रभावित किया?
मुझे खाना बनाना बहुत पसंद है। मेरे ससुराल में शादी के 41 दिन के बाद मीठा बनाना होता है। मैंने सूजी का हलवा बनाया, जो सबको बहुत पसंद आया। इसके अलावा, मैं पास्ता, पनीर की सब्जी जैसी कई चीजें बनाती हूं। मेरे हाथ की बनी शाही पनीर मेरे पति को बहुत पसंद है। मेरी सासू मां मेरे हाथ की बनी शाम की चाय पीना पसंद करती हैं। 

‘दीया  और बाती हम” के अलावा  और कुछ करने का इरादा नहीं है?
ऑफर तो आते ही रहते हैं लेकिन फिलहाल तो इससे ही फुर्सत नहीं है। शादी के बाद मुझे अपने पति के साथ समय बिताने का मौका ही नहीं मिला। अब मेरी इच्छा उनके साथ अधिक से अधिक समय बिताने की है। 

थिएटर करने के बारे में आपने कभी सोचा नहीं?
मैं एक इंग्लिश प्ले कर रही थी। उसके लिए रिहर्सल भी किया। फिर बाद में मेरी तारीखें ही मैच नहीं हो पा रही थीं, इसलिए मुझे छोड़ना पड़ा। 

फिल्में करने की ख्वाहिश है?
फिल्में तो सभी करना चाहते हैं। कुछ ऑफर्स भी आए हैं मेरे पास लेकिन मैं क्वांटिटी की जगह क्वालिटी पर ध्यान देना चाहती हूं। मुझे लगता है कि जल्दी ही आपलोगों को पता चलेगा कि कनिका फिल्म करने वाली है। यह भारतीय नहीं बल्कि बाहर की फिल्म है। 

शुक्रवार, 16 मार्च 2012

छोटे शहर की सुवरीन गुग्गल



चैनल वी ने सुवरीन गुग्गल: टॉपर ऑफ द ईयर के शुभारंभ की घोषणा की जो एक छोटे शहर की लड़की और एक बड़े शहर में उसके रोमांच की दिलचस्प कहानी है। यह एक प्रेरणादायक कहानी है जो बताती है कि यह पीढ़ी आइपॉड और लो वेस्ट जींस से कुछ ज्यादा है। कई गुना उम्मीदों, साथियों के दबाव, माता-पिता की समस्याओं, कॉलेज की राजनीति और किशोरों की चिंता की पृष्ठभूमि में सेट यह उन युवाओं की गाथा है जो दिल्ली के एक प्रतिष्ठित कॉलेज डीपीएससी में पढ़ते हैं जो एक ऐसे व्यक्ति द्वारा चलाया जा रहा है जो कैम्पस में बदलाव की एक धारा का नेतृत्व करता है। सुवरीन दुग्गल काठगोदाम से आयी एक सीधी-सादी, नैतिक, हंसमुख और दृढ़ लड़की है। उंची अपेक्षाओं वाली यह मध्यमवर्गीय लड़की बड़े शहर की जिंदगी में जुनून के साथ प्रवेश करती हैै। सच्चाई की कठोरता का सामना होते ही उसके सपने टूटने लगते हैं लेकिन सुवरीन का धैर्य उसे अपने सपनों को पूरा करने और उन लड़कों के ग्रुप में करिश्माई बनने की प्रेरणा देता है जिनके सपने कुछ नम्बरों से टूट गये हैं। वह सभी बाधाओं के खिला फ लड़ती है और हजारों विद्यार्थियों के लिये उम्मीद की किरण बनती है। प्यार और कॉलेज की राजनीति मंे बंटी यह दिलचस्प और मजाकिया कहानी 19 मार्च 2012 से दर्शकों का मनोरंजन करने के लिये पूरी तरह तैयार है।
कार्यकारी उपाध्यक्ष और महाप्रबंधक प्रेम कामथ ने शो के शुरुआत की घोषणा करते हुये कहा, ‘‘अधिकांश भारतीय युवा सपने देखने वाले हैं और दूसरों के सपनों को जीने वाले हैं, चाहे वह मां बाप हों, दोस्त हों या फिर पॉपुलर संस्कृति हो। सुवरीन गुग्गल एक छोटे शहर की लड़की के सपनों और उसकी उम्मीदों का सामना करती है और दोस्तों व मां बाप के दबावों को तोड़ने की कोशिश करती है। यह एक हल्का फुल्का मनोरंजक ड्रामा है जिसमें उसके एक छोटे शहर से दिल्ली की हाइ कॉलेज लाइफ तक के उतारों चढ़ावांे को दिखाया जायेगा। सुवरीन का मुख्य किरदार 12/24 करोलबाग (ज़ी टीवी) से प्रसिद्ध हुयी स्मृति कालरा निभाएंगी। शो के बारे में बोलते हुये स्मृति ने कहा, ‘‘चैनल वी जो पहले एक म्यूजिक चैनल था, अब अपने दर्शकों को संपूर्ण मनोरंजन प्रदान करने के लिये फिक्शन और नॉन-फिक्शन दोनों श्रेणियों में शो की एक श्रृंखला का प्रसारण कर रहा है। 19 मार्च को आप उम्मीद से भरी और मुस्कराती हुयी सुवरीन गुग्गल को देखेंगे जो इधर-उधर घूमती है और वे सवाल पूछती है जो आपके दिमाग में रहते हैं और जिन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता। सुवरीन गुग्गल अपने चुलबुले और शरारती तरीकों से उनका समाधान निकालती हैं। सुवरीन का किरदार बहुत रोचक और लुभावना है जिससे युवा बहुत आसानी से कनेक्ट कर सकते हैं।’’
मशहूर अभिनेता अक्षय आनंद सुवरीन के पिता की भूमिका में होंगे। शो को निर्माण फोर लायन्स प्रोडक्शन द्वारा किया जा रहा है।

भारत और पाकिस्तान में कैलाश खेर


गायक कैलाश खेर अपने एलबम ‘रंगीले’ के प्रचार व प्रसार के सिलसिले में पूरे भारत के दौरे में व्यस्त हैं लेकिन ऐसी व्यस्तता में से कुछ वक्त निकाल कर वो १८ मार्च यानि रविवार को ढाका में भारत व पाकिस्तान के बीच होने वाले क्रिकेट मैच में अपने गीतों को गायेगें. कैलाश जी ने ‘अल्लाह के बंदे’ के हिट होने से भी पहले सन २००३ में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए क्रिकेट वर्ल्ड कप में ‘छूना है आसमान’ जिंगल को गाया था.

कैलाश खेर से क्रिकेट के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि, “क्रिकेट के बारे में मुझे बहुत ज्यादा नही मालूम लेकिन जब भी कभी मुझे समय मिलता है मैं क्रिकेट देखता हूँ. क्रिकेट स्कोर के बारे में अपडेट रखता हूँ. मैंने सन २००३ में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए क्रिकेट वर्ल्ड कप में ‘छूना है आसमान’ जिंगल को गाया था और अब फिर से ९ साल बाद इन दोनों टीमों के लिए गा रहा हूँ.’’

कैलाश जी से पूछने पर आप कौन सी टीम को अपनी शुभ कामनाएं देगें ? उन्होंने कहा कि ‘निस्संदेह अपनी भारतीय टीम को और किस टीम को. लेकिन मैं आपको बता दूं कि पाकिस्तान टीम में भी बहुत सारे ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्हें मैं बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ और जो मेरे गीतों को सुनते हैं.”

गुरुवार, 15 मार्च 2012

आभास का फटा कुर्ता


स्टार परिवार अवार्ड्स 2012 में भागीदारी कर पहली बार इसका हिस्सा बन रहे इस प्यार को क्या नाम दूं के आभास उर्फ श्याम को एक शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा।
जैसा कि हम सब जानते हैं कि आभास शो में नकारात्मक किरदार निभाते हैं लेकिन असली ज़िंदगी में वह बहुत मस्तीपसंद इंसान हैं। यह अभिनेता पूरी टीम के साथ पुरस्कार समारोह में आने को लेकर बहुत उत्साहित था और यह प्रतिभाशाली अभिनेता जब भी मंच पर गया, अपने टीम के सदस्यों को हंसाने की कोशिश की लेकिन उन्हें अंदाजा नहीं लगा कि उन्होंने अपना कुर्ता फाड़ लिया है। इस समस्या का पता उन्हें तब चला जब उन्होंने खुद को टीवी स्क्रीन पर अपने प्रदर्शन के दौरान कुशी के लिये कूदते और हंसते देखा। जहां समारोह में मौजूद हर व्यक्ति हंस रहा था, वहीं आभास ने पता चल जाने के बावजूद और ज्यादा ऊर्जा से अपना कार्यक्रम जारी रखा।