गौरव पंजवानी को फिल्म निर्देशक बनने के लिए बहुत संघर्ष नहीं करना पड़ा क्योंकि उनका बचपन न केवल थिएटर और फिल्मों में काम करके बीता है बल्कि इसलिए भी क्योंकि उनको सही समय पर सही ब्रेक भी मिल गया। जल्दी ही रिलीज को तैयार फिल्म ‘सेकेंड मैरिज डॉट कॉम” के निर्देशक गौरव पंजवानी ने बहुत कम उम्र में वह सब हासिल करके दिखाया है, जिसके लिए लोगों को सालों साल लग जाते हैं। जयपुर के रहने वाले गौरव ने अपनी पहली फिल्म के लिए आज के समय का कंटेम्पररी सब्जेक्ट चुना। गौरव पंजवानी से बातचीत-
अपने बैकग्राउंड के बारे में बताइए, किस तरह से आपका रुझान फिल्मों की ओर हुआ?
मैं जयपुर का रहने वाला हूं। वहां मेट्रो कल्चर पूरी तरह से नहीं है, फिर भी मैंने आठवीं क्लास से ही थिएटर में एक्टिंग करना शुरू कर दिया था। ग्यारहवीं क्लास तक आते-आते नाटकों का निर्देशन करने लगा था। उसी समय मेरे स्कूल की प्रिंसिपल ने मुझे बुलाया और एक शॉर्ट फिल्म का सब्जेक्ट सुनाया। मुझे लगा कि वह इसमें मुझे एक्ट करने के लिए कहेंगी। लेकिन उन्होंने मुझे उस फिल्म को डायरेक्ट करने के लिए कहा। फिल्म का नाम ‘बिंदिया चमकेगी” था, जो बिंदिया नामक लड़की की कहानी थी। वह किस तरह पढ़ना चाहती है और उसका एडमिशन आईआईटी में होता है। उस फिल्म ने मेरे जीवन की दिशा बदल दी और मुझे लगा कि मैं बस यही करना चाहता हूं।
फिर मुंबई कब आना हुआ?
बारहवीं के बाद मैंने देश-विदेश की हर तरह की फिल्में देखना शुरू कर दिया था। बाद में शॉर्ट फिल्में बनाने लगा। अपनी शॉर्ट फिल्मों के लिए मुझे 17-18 अवॉर्ड मिल चुके हैं। मैं फ्रीलांस में विज्ञापन बनाता था, उससे जो पैसे मिलते थे, उनसे फिल्में बनाता था। शुरुआत में तो परिवार से कोई मदद नहीं मिली। मेरे मुंबई आने को लेकर पर भी वे खुश नहीं थे। एक एड एजेंसी के काम के सिलसिले में पिछले साल मुंबई आया और यहीं रह गया।
एक साल में ही आपको फिल्म डायरेक्ट करने का मौका मिल गया, यह सब कैसा संभव हुआ?
मैं खुद को लकी मानता हूं कि मुझे एक साल में ही यह सुनहरा मौका मिला। ‘सेकेंड मैरिज डॉट कॉम” के जो एग्जक्यूटिव प्रोड्यूसर हैं, उन्होंने मुझे बुलाया और बताया कि प्रोड्यूसर विनोद मेहता फिल्म बनाने के लिए किसी कहानी की खोज में हैं। मैं विनोद जी से मिला और उन्हें यह कहानी सुनाई। उन्हें कहानी पसंद आई और दिसंबर में फिल्म की शूटिंग शुरू हो गई।
फिल्म की कहानी क्या है और इस कहानी के बीज आपको कहां मिले?
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, फिल्म दूसरी शादी पर आधारित है। एक लड़का है, जिसकी मां की मृत्यु हो चुकी है और उसे लगता है कि उसकी शादी से पहले उसके पापा का सेटल होना जरूरी है। इसी तरह एक लड़की है, जो अपनी मां की शादी कराना चाहती है। दोनों मिलते हैं और अपने-अपने मम्मी और पापा की शादी कराने में लग जाते हैं। लेकिन तब क्या होता है, जब उन दोनों को अहसास होता है कि वे ही एक-दूसरे से प्यार करने लगे हैं। इस फिल्म की कहानी के बीज मुझे 2010 में मिले थे। मेरे ई-मेल पर सेकेंड मैरिज को लेकर एक जंक मेल आया था। उसमें लिखा था कि 15 साल के बेटे और 13 की बेटी ने अपने-अपने मम्मी और पापा की दूसरी शादी करवाई। तब मेरे दिमाग में यह कौंधा कि यदि इन दोनों को आपस में प्यार हो जाए तो किस तरह से कहानी आगे बढ़ेगी।
इन दिनों शहर को भी बतौर चरित्र लिया जाने लगा है, आपने दिल्ली और जयपुर को ही क्यों चुना?
बिल्कुल सही, मैंने दिल्ली-गुड़गांव और जयपुर के चरित्र के तौर पर दिखाने की कोशिश की है। इसकी कहानी भी दिल्ली को सूट करती है क्योंकि फिल्म के कैरेक्टर्स पंजाबी हैं। लड़का गुड़गांव और लड़की जयपुर की रहने वाली है। गुह़गांव की अपनी खूबसूरती है, इसके एरियल शॉट्स इतने सुंदर आए हैं कि मैं बयान नहीं कर सकता। इसके अलावा मैंने वसंत कुंज में भी शूटिंग की, दिल्ली के फ्लेवर के लिए। जयपुर से दिल्ली के रास्ते की ऑन रोड शूटिंग भी फिल्म के लिए की गई।
फिल्म के लिए नए चेहरों को चुनने की क्या वजह रही?
पहली दफा मेरे दिमाग में यही आया कि यदि हम थोड़ी अलग फिल्म बना रहे हैं तो नए चेहरों को लेना ही ठीक रहेगा। इस तरह से सिनेमा हॉल में बैठा दर्शक कैरेक्टर्स के रिएक्शन को समझ नहीं पाएगा। मेरे एक दोस्त ने मेरे फेसबुक वॉल पर एक क्लिप पोस्ट किया था, जिसमें सयानी थी। मुझे उसका काम पसंद आया और मैं उससे मिला। हीरो के लिए मुझे गुडलुकिंग लड़के की जरूरत थी तो मुझे विशाल पसंद आ गया। मैंने उसका ऑडिशन भी नहीं लिया। सयानी की सिंगल मदर के लिए चारू जी और विशाल के पापा के रोल में मोहित चौहान मुझे पसंद आ गए। एक बात आपको यह बता दूं कि इनी लाइफ ऑन स्क्रीन और ऑफस्क्रीन काफी हद तक मिलती है, जिसकी वजह से भी मैंने इन्हें साइन किया। सयानी सिंगल मदर की बेटी है। चारू ने कम उम्र में ही अपने पति को खो दिया। और जहां तक मुझे पता है कि मोहित चौहान ने भी देरी से शादी की। मुझे लगा कि ये सब इमोशंस को असल मायने में जाहिर कर पाने में सफल होंगे।
इन दिनों ट्रेंड है कि कंटेम्पररी फिल्मों को अवॉर्ड समारोहों में भेजने का, आपका क्या इरादा है?
फिल्म के निर्माता ऐसा नहीं चाहते। हर निर्माता की तरह उनकी चाहत है कि फिल्म अच्छी चले और कमाए। हां, यदि यह फिल्म किसी अवॉर्ड फंक्शन में जाए तो मुझे जरूर खुशी होगी।
इस फिल्म की कामयाबी की कितनी उम्मीद है?
भला कौन नहीं चाहेगा कि उसकी फिल्म को लोग पसंद करें। लेकिन मैं यह भी चाहता हूं कि मेरी इस फिल्म से यदि किसी को प्रेरणा मिलती है कि वह जीवन में नई शुरुआत कर सके तो वही मेरी कामयाबी होगी।
इसके बाद क्या योजना है?
मुझे नहीं पता! यदि लोगों को फिल्म पसंद आई तो और फिल्में बनाऊंगा। यदि खुदा-न-खास्ते नहीं पसंद आई तो कहीं भी एडिटर या कोई और नौकरी कर लूंगा।